कभी हार मत मानो शायरी,
ईश्वर ने मनुष्य को तीन गुण दिए हैं, विचार, वचन और व्यवहार। विचार करने की क्षमता जो मनुष्य में है, वह किसी दूसरे प्राणी में नहीं है। वचन पूरा करने की जो शक्ति मनुष्य में है, वह किसी दूसरे जीव-जन्तु में नहीं है। व्यवहार बदलने की जो ताकत मनुष्य में है, वह किसी और में नहीं है। इसलिए आप सब कुछ कर सकते हैं। आसमान में उड़ सकते हैं, समुद्र में तैर सकते हैं और बड़े से बड़ा जोखिम लेकर अपने आपको सफलता के शिखर पर पहुंचा सकता है।
हमारा संकल्प कितना भी मजबूत क्यों न हो, कभी-कभी हम निराश हो जाते हैं और हार मान लेना चाहते हैं। वो ऐसा समय होता हैं जब हमें कुछ प्रोत्साहन की सबसे अधिक आवश्यकता होती है।
तो दोस्तों इस पोस्ट में हमने आपके लिए कभी हार मत मानो विषय पर शायरीए लिखी है। आशा करता हूं आपको यह पसंद आए।
कभी हार मत मानो शायरी हिंदी में
चाहे अंगारों का तपता जलता जीवन पथ हो,
चाहे कठिन रास्ता हो
मुझे दिख रही मंजिल, जल्दी ही पहुँचूंगा,
मुझसे है मुझको मेरा वास्ता
मंजिल पर पहुंचकर दहादूँगा,
मैं हार नहीं मानूंगा।

चाहे तपते पथ पर पाँव मेरे
जलकर डगमग डगमग होते हों
चलना छूट जाए तो क्या,
रेंगना नहीं छोडूंगा,
मंजिल पर पहुँचकर दहादूँगा,
मैं हार नहीं मानूँगा।
पथ पर डरूँगा नहीं,
किसी से अदूंगा नहीं
समय पर झुक जाऊँगा,
अगर गिर गया तो उठकर
फिर मंज़िल की ओर दौड़ जाऊँगा
मंजिल पर पहुंचकर दहाहूंगा,
मैं हार नहीं मानूँगा।
मैं बंद आँखों वाले सपने क्यों याद रखू
मैं आँखें खोलकर सपने देखता हूँ,
रास्ता कठिन है मंजिल का,
संभव नहीं पर, फिर भी चलूंगा,
मंजिल पर पहुंचकर दहाडूंगा,
मैं हार नहीं मानूँगा।
बेशक थकता हुआ लड़खडाता हुआ
मंज़िल पर सही रास्ता चुनूँगा और चलूँगा
मंजिल पर पहुंचकर दहादूंगा
मैं हार नहीं मानूंगा।
लोग मुझे कहते हैं रास्ता कठिन है छोड दो
तो मैं औरों के कहने पर हार क्यों मानू
तुम तुम्हारा सन जानो मैं मेरी बेसनी जानूं,
मैं तो बस इतना मानु कि
मंजिल पर पहुँचकर दहादूंगा,
मैं हार नहीं मानूंगा।
जीवन पथ पर ये मुझे पता है कि
पथ आसान नहीं फिर भी
डटकर मुसीबतों का मुकाबला करूंगा
मंजिल पर पहुंचकर दहादूँगा,
मैं हार नहीं मानूंगा।
हार न मानने वाली शायरी
यदि किसी भी विषय में तुम कष्ट महसूस करो तो तीन बार इस मंत्र का स्मरण करो
मैं हार नहीं मानूँगा, मैं हार नहीं मानूंगा, मैं हार नहीं मानूँगा
फिर तुम आगे बढ़ो पूरी ताक़त से
संघर्ष करो निश्चित ही जीत जाओगे
फिर ये बोल पाओगे
मंजिल पर पहुंचकर दहादूंगा,
मैं हार नहीं मानूंगा।
मैं आशावादी तो हूँ,
मैं मेहनत का तूफान भी हूँ
मुश्किलों को जड़ से उखाड़कर ले उडूंगा,
फिर पीछे देखने को नहीं मुदूंगा
अड़चनों को ले उडूंगा,
मंजिल पर पहुँचकर दहादूंगा,
मैं हार नहीं मानूँगा।
चाहे अपना कोई पथ पर साथ छोड़ जाये
विश्वास पर घात कर जाये,
फिर भी पथ पर अकेला ही चलूंगा
पर अपनों से नहीं लडूंगा
आगे बदूंगा, भाग्य से रण करूंगा,
प्रतिकूल समस्याओं को अपने अनुकूल करूंगा
उन्हें साथ ले आगे बढुंगा
मंजिल पर पहुंचकर दहाडूंगा,
मैं हार नहीं मानूंगा
प्यासे की प्यास मिटाऊंगा,
भूखे को भोजन खिलाऊंगा
नंगे को वस्त्र पहनाऊंगा,
रोते को हंसाऊगा
कर्जदार का कर्ज मिटाऊंगा
गरीब को समृद्धि दिलाऊंगा
छोटों को बड़ों के प्रति संस्कार सिखाऊंगा
बेघरों को घर, अनाथों को सनाथ बनाऊँगा
सैनिकों का साहस बढ़ाऊंगा,
पुण्य को स्थापित कर पाप मिटाऊगा
भाई को विभीषण नहीं, भरत जैसा बनाऊंगा
युवाओं को स्वामी विवेकानंद जैसा बनाऊंगा
और सबका अरख कहूँ तो
राम – राज एक दिन ज़रूर लाऊंगा
ये सब हो जाए तो समझ लेना
मेरी मंजिल यही थी, फिर भी
मंजिल पर पहुँचकर दहाडुगा
मैं हार नहीं मानूंगा।
रुक ना जाना तू कहीं हार के शायरी
तुम भी तो हो, जग के,
फिर दुर्बल कैसे हो गये?
क्या मन्ज़िल इतना दुर है?
जो आँखों मे ही, खो गये।
उठ तू, ज़मीर पर,
उम्मीद को जलाये रख।
पाना है आसमाँ गर तो,
इतना जल्दी तू ना थक।
तकराती हुई लहरें ,
चट्टानों से भी देखे है।
परीक्षा लेते उनका,
फिर रास्ते भी देते है।
लक्ष्य पाने से पहले ही,
क्यों घुटने तुमने टेके है?
उठ और पुरा कर,
जो ख़्वाब तुने देखे है।।
जीतता चल राह के
हर दंश को तू मारके,
रुक ना जाना तू
कहीं हार के।
तेरी मंज़िल तुझमें है
ये तू जान ले
वीर तुझसा नहीं है जहां में
खुद को पहचान ले।
जिंदगी की मुसीबतों से
जो तू हार जायेगा,
वीर नहीं तू
कायर कहलाएगा।
बाधाएं आयेंगी राह में ज़रूर पर
उनसे न तुझे डरना होगा
परिश्रम ही है सफलता की चाबी
डटकर तुझे सामना करना होगा।
गैर भी होंगे तेरे अपने
जो तू सफल होगा,
अपने भी न होंगे तेरे अपने
जो तू विफल होगा।
होता है चमत्कार को नमस्कार
सदा ये तू जान ले
ख़ास है इस जहां में
खुद को तू पहचान ले।
सींचता चल जीवन वृक्ष को
बचाकर हर खरपतवार से
रुक ना जाना तू
कहीं हार के।
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